BJP ने Chirag Paswan को सियासी पर कतरने की कोशिश
बीजेपी ने भारतीय राजनीति में संगठनात्मक सलाह और मशविरे के अलावा अपनी पार्टी के मूल सिद्धांतों पर चलने की परंपरा कायम की है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस राजनीतिक दल नियमों को नहीं भूलता है। सहयोगियों पर नज़र रहती है। राजनीतिक लाभ और नुकसान के आधार पर निर्णय किए जाते हैं। चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिला। BJP ने Chirag Paswan को सियासी पर कतरने की कोशिश बीजेपी अब चिराग पासवान की बातों से घबरा गई है। साथ ही, चिराग पासवान अपने बयानों और व्यवहार से एनडीए के अन्य दलों को प्रेरित कर रहे हैं। कई मुद्दों पर सहयोगी दल भी एकमत नहीं हैं। खासकर एनडीए के दो प्रमुख दलों, टीडीपी और जेडीयू को। लेकिन वे नरेंद्र मोदी के साथ अभी भी खामोश हैं या खुलकर हैं। दोनों पार्टियों के सदस्यों की संख्या चिराग से छह गुनी है। चिराग की पार्टी के सिर्फ एक सांसद से ढाई गुना अधिक हैं। जेडीयू के बारह सांसद हैं, जबकि चिराग के सिर्फ पांच हैं। वर्तमान में बिहार के राजनीतिक गलियारे में चिराग को लेकर कई तरह की बहसें चल रही हैं। इन बहसों में कोई तथ्य नहीं है। हाल ही में चिराग की चाल को देखते हुए, इन बहसों को पूरी तरह से दूर भी नहीं किया जा सकता। वर्तमान में चिराग केंद्रीय राजनीति में सीमित हैं। उन्होंने बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में 134 उम्मीदवार उतारे थे। हाथ खाली रह गए। जेडीयू ने 38 सीटें खो दीं। जेडीयू पूरी तरह से 43 मतों पर विधानसभा में गिर गया। पार्टी की इस विफलता के बावजूद, चिराग ने बिहार की राजनीति में रुचि नहीं दिखाई। उनके मन में अब भी CM बनने का सपना है। यही कारण था कि उन्होंने बिहार पहले, बिहारी पहले का नारा लगाया था। आज प्रशांत किशोर नीतीश सरकार की कमियों को खोज-खोड़ कर बता रहे हैं, चिराग ने भी बिहार में ऐसा ही किया था। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में ही स्पष्ट होगा कि प्रशांत किशोर का अभियान कितने प्रभावी होगा, लेकिन चिराग की शक्ति और कमजोरी बिहार की राजनीति करने वाले सभी नेता जानते हैं।
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BJP ने Chirag Paswan को सियासी पर कतरने की कोशिश की अब इसे भाजपा का डैमेज कंट्रोल या लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को संतुलन में लाने की नीति कह सकते हैं। वास्तव में, भाजपा लोजपा को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति और लोजपा (आर) में विभाजित करना नहीं चाहती है। राष्ट्रीय लोजपा नेता पशुपति पारस ने भाजपा की इस कोशिश को लोकसभा चुनाव के दौरान नकार दिया था. अब बीजेपी विधानसभा 2025 की तैयारी कर रही है और चिराग पासवान ऐसे बयान दे रहे हैं जो मोदी सरकार को केंद्र में बाधा डाल रहे हैं। बीजेपी राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी यानी पशुपति पारस को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बागी मत देना नहीं चाहती। गौर करें, पारस ही लोकसभा चुनाव में हारी। प्रधानमंत्री बन गया। सांसदी गई थी। सुनील पांडे ने उपचुनाव में एक सीट अधिक मांगी, लेकिन भाजपा ने उनके उम्मीदवार को ही हराया।
BJP ने Chirag Paswan को सियासी पर कतरने की कोशिश
भाजपा ने चिराग पासवान को नियंत्रित करने की कोशिश की है क्योंकि वे विरोधी हैं। विपक्षी गठबंधन “इंडिया” के नेताओं ने लैटरल एंट्री, एससी-एसटी आरक्षण और वक्फ संशोधन बिल पर अपनी राय व्यक्त की है। एनडीए में समझौता नहीं होने पर वे भी अलग से विधानसभा चुनाव करने की बात करने लगे हैं। आपरेशन लोटस के संकेत चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस की एनडीए में बढ़ती पूछ से मिल रहे हैं।चिराग पासवान का एनडीए क्या करेगा? यह शायद चिराग को पता चला है। एनडीए में रहते हुए नरेंद्र मोदी सरकार के निर्णयों पर उनका असंतोष इसका ही संकेत देता है। पानी में रहते हुए बैर नहीं चल सकता। चिराग को पीछे हटना उनके और उनकी पार्टी के लिए भी अच्छा नहीं होगा। एनडीए में उनके साथ व्यवहार का प्रश्न नहीं है। वास्तव में, सवाल यह है कि चिराग आखिर किसके निर्देश पर ऐसा कर रहे हैं? नरेंद्र मोदी को उनकी भाषा और व्यवहार सीधे चुनौती देते हैं।
BJP की रणनीति
राष्ट्रीय लोजपा, विशेष रूप से चिराग की पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार देकर एनडीए को नुकसान पहुंचा सकती है। राष्ट्रीय लोजपा को भारत गठबंधन में शामिल होने का खतरा बढ़ सकता है। पासवान वोट इस स्थिति में कम या अधिक हो सकते हैं। राजद में रामविलास पासवान के दामाद अनिल कुमार साधु हमेशा चिराग पासवान के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते रहते हैं। पशुपति पारस गर इंडिया गठबंधन में शामिल होने पर एक और एक ग्यारह हो सकता है। कांग्रेस में पहले से ही नीतीश सरकार में मंत्री महेश्वर हजारी के पुत्र सन्नी पासवान ने चिराग को घेर लिया है। प्रिंस पासवान, समस्तीपुर के पूर्व सांसद, ने भी चिराग को राजनीतिक धमकी दी है।
अमित शाह और पारस की बैठक
वास्तव में, चिराग पासवान को अमित शाह से पशुपति पारस और प्रिंस पासवान की मुलाकात काफी है। यहाँ देखा गया कि कई मुद्दे भाजपा की राय से सीधे विपरीत रहे। मामला चाहे आरक्षण, लैटरल नियुक्ति या वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 का हो। चिराग पासवान की तीखी प्रतिक्रिया ने भारत गठबंधन का उत्साह बढ़ा दिया। भाजपा को अपने ही गठबंधन दल से निराशा हुई। प्रिंस पासवान और पशुपति पारस बीजेपी के वरिष्ठ नेता से मिल रहे थे, जब चिराग पासवान अपनी पार्टी की कमजोरी पर रो रहे थे। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह बीजेपी की कार्रवाई योजना का एक हिस्सा है। अपरोक्ष रूप से अमित शाह ने चिराग पासवान को बताया कि प्रिंस पासवान और पशुपति पारस मेरे लिए अछूत नहीं हैं। ये कदम हनुमान की चाल को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है।
योग्यता और बीजेपी
प्रवीण बागी, एक वरिष्ठ पत्रकार, कहते हैं कि भाजपा लोजपा को उसके मूल स्वरूप में रखने का पक्षधर है। लोजपा अपने मतों को बाँट देगी। यह महत्वपूर्ण है कि किसकी झोली में कितना वोट आता है। भाजपा बूंद-बूंद से पैसे जुटाने में माहिर है। इसलिए, लोकसभा चुनाव के दौरान पशुपति पारस आश्वासन की चाशनी के फेर में रहे। अब पशुपति पारस को विधानसभा चुनाव 2025 से पूरी उम्मीद है। पशुपति पारस को पता है कि भाजपा या जदयू कोई अपने सीटों को छोड़ने नहीं देंगे ताकि उनके लिए कोई अलग हिस्सेदारी दी जाए। ऐसे में पशुपति पारस और चिराग पासवान को एनडीए में कितनी विधानसभा सीटें मिलेंगी उतनी ही सीटें लोजपा को मिलनी चाहिए। भाजपा को राहत मिलेगी अगर दोनों सहमत हो जाएंगे।